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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2793
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 7

कौटिल्य के सप्तांग एवं मण्डल सिद्धान्त

(Saptang and Mandal Theory of Kautilya)

प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।

अथवा
कौटिल्य के सप्तांग सिद्धान्त के विषय में आप क्या जानते हैं? समझाइए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. राज्य के सात अंगों के महत्व का विवरण दीजिए।
2. राज्य के सप्तांगों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-

राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ या सप्तांग सिद्धान्त

सप्तांग अंग - प्राचीन भारत में हिन्दू राजतंत्र के व्यापक विकास के दर्शन होते हैं। नीतिशास्त्र की प्राचीनकाल की पुस्तकों तथा समकालीन साहित्य से राजा के स्वरूप, गुण, राज्य की प्रकृति एवं स्वरूप तथा संगठन में तार्किक, दार्शनिक, वैज्ञानिक आदि पर विस्तार के साथ विवरण है, साथ ही साथ कौटिल्य के सप्तांग सिद्धान्त के विषय में भी अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। मनुस्मृति तथा अन्य ग्रन्थों में भी इस प्रकार के सिद्धान्त पर प्रकाश डाला गया है।

सप्तांग - नामकरण तथा अवधारणा : प्राचीन हिन्दू राजतंत्र के विद्वानों ने राज्य के सावयव रूप की कल्पना की है तथा यह स्वीकार किया है कि मानव शरीर के समान राज्य भी विभिन्न अवयव जन्म प्रवृत्तियों का एक सम्बन्धित स्वरूप है। ये अवयव सात बताये गये हैं। इन सातों को राज्य के सात अंग के रूप में स्वीकार किया गया है। इनसे राज्य शरीर की रचना मानी जाती है। इन्हीं अंगों को सप्तांग के नाम से पुकारा गया है।

सात अंग या सप्तांग - सातों अंग प्राकृतिक अवयव हैं। प्राकृतिक अवयव वह है जो स्वतः अपने जुटा हो। कालिम अवयव तो जोड़ा जाता है तथा निकाला जाता है, परन्तु प्राकृतिक अवयव को हटाया नहीं जा सकता है। राज्य के नाम के साथ ही ये सातों स्वयमेव जुड़े रहने से प्राकृतिक अवयव अथवा स्वाभाविक अंग कहे जाते हैं।

(1) स्वामी - स्वामी से तात्पर्य राजा अथवा सम्राट से है। यह राज्य का प्रथम अंग है। कौटिल्य राजा के गुणों की विस्तारपूर्वक चर्चा करता है। उसके अनुसार राजा को निम्नलिखित गुणों से संयुक्त होना चाहिए-

(i) उच्चकुल में उत्पन्न,
(ii) दैव- सम्पन्न,
(iii) बुद्धिमान,
(iv) सत्व- सम्पन्न (सम्पत्ति तथा विपत्ति में धैर्यशाली),
(v) वृद्धदर्शी
( वृद्धजनों का सेवक ),
(vi) धर्मात्मा,
(vii) सत्यनिष्ठ,
(viii) सत्यप्रतिज्ञ (अविसंवादक),
(ix) कृतज्ञ,
(x) स्थूललक्ष ( महान दाता),
(xi) महान उत्साहयुक्त,
(xii) आलस्यरहित,
(xiii) सामन्तों को आसानी से वश में करने वाला,
(xiv) दृढ़ निश्चयी
(xv) विनयशील।

यहाँ 'महाकुलीनता' का उल्लेख विशेष महत्वपूर्ण है। कौटिल्य इस बात के बिल्कुल पक्ष में नहीं था कि शासन की बागडोर किसी निम्न कुल में उत्पन्न व्यक्ति को प्राप्त हो।

(2) अमात्य - कौटिल्य ने अमात्यों की उपयोगिता का उल्लेख करते हुए राज्य प्रबन्ध की सफलता के लिए अमात्यों की नियुक्ति पर अधिक बल दिया है। एक अमात्य में विद्या, बुद्धि, विवेक, नीति, निपुण, साहसी, राष्ट्र सेवा, स्वामी भक्त, कर्तव्यनिष्ठ एवं स्वार्थरहित आदि गुण होना चाहिए तब ही वह सफल अमात्य बन सकेगा।

(3) जनपद - कौटिल्य ने इनका जनपद के महत्व पर अधिक महत्व दिया गया है। जनपद का अर्थ राष्ट्र एवं वहाँ की निवास करने वाली जनता से है। अर्थशास्त्र में हर जनपद के लिए जनसंख्या निश्चित तथा प्राकृतिक सीमाबद्ध भू-क्षेत्र, राज्य सत्ता की स्थापना, सैन्य शक्ति एवं आर्थिक व्यवस्था को आवश्यक अंग बताया गया हैं।

(4) दुर्ग - कौटिल्य ने राज्य का विशेष महत्व पर बल देते हुए दुर्गों के निर्माण की आवश्यकता बताई है। उसने चार प्रकार के दुर्गों का उल्लेख किया है। जिनके नाम हैं-

(1) औदिक दुर्ग
(2) पार्वत दुर्ग
( 3 ) घान्वन् दुर्ग तथा
(4) वन दुर्ग।

महाभारत में भी कई अन्य प्रकार के दुर्गों का उल्लेख है। राजधानी को दुर्गाकार रूप में बसाया जाता था इस कारण इसको पुर भी कहा गया है।

(5) कोष - राज्य की खुशहाली, समस्त कार्यविधियों तथा सुचारु संचालन के दृष्टिकोण से कोष का बड़ा महत्व है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार "राजा को अपने पूर्वजों द्वारा कोष में जो धन जमा किया है उसका व्यय बड़ी सावधानी के साथ करना चाहिए तथा ऐसे उचित साधनों द्वारा इसमें वृद्धि भी करनी आवश्यक है।'

(6) सैनिक शक्ति - राज्य की सुरक्षा तथा उसके विस्तार के लिये सैनिक शक्ति का बड़ा महत्व है। अतः इसके संगठन पर अधिक रूप में बल देना चाहिए। कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में सेना की सात श्रेणियों का वर्णन किया है। जिनके नाम हैं-

(i) मोल सेना - इस सेना को राजधानी में रहना चाहिए तथा राजधानी की सुरक्षा इसी के हाथों में रहना चाहिए।

(ii) भूत सेना - इसमें किराए पर लड़ने वाले सैनिक होते थे।

(iii) श्रेणी सेना - इस प्रकार की सेना में युद्धवीर जातियों के सैनिकों को भर्ती करना चाहिए।

(iv) मित्र सेना - इस प्रकार की सेना में मित्र राज्यों के सैनिक होते थे।

(v) अमित्र सेना - इस प्रकार की सेना में शत्रु राज्य के सैनिक होते थे।

(vi) अटवी सेना - इस प्रकार की सेना में अन्य जातियों के सैनिक थे।

(vii) साहिक सेना - इसमें लूटमार करने वाले हिंसक तथा दस्यु आदि व्यक्तियों को सैनिक रूप में नियुक्त किया जाता था।

(7) मित्र - कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राज्य के सप्तांग का अन्तिम अंग मित्र वर्ग है। विपदा अशान्ति तथा आवश्यकता के समय अच्छी सहायता मित्र राष्ट्रों की सेना से मिलती है।

सापेक्षिक महत्व - सप्तांग सिद्धान्त के सातों अंग में कौटिल्य ने बताया है कि प्रत्येक पहले वाला अपने बाद वाले के मुकाबले में अधिक महत्वपूर्ण होता है जैसेकि स्वामी अमात्य से, अमात्य जनपद से इत्यादि-इत्यादि। परन्तु कौटिल्य ने इन सात अंगों में स्वामी राजा के अंग को सर्वश्रेष्ठ तथा शक्तिमान माना है। क्योंकि अन्य अंग उसी के इर्द-गिर्द घूमते हैं तथा उसी के आदर्श ग्रहण करते हैं। यही वह प्रमुख कारण है कि प्राचीन विचारकों ने जब भी राज्य की उत्पत्ति की बात पर प्रकाश डाला तब राजा की उत्पत्ति का वर्णन सर्वश्रेष्ठ माना। परन्तु भारद्वाज ने आमात्य पर अधिक बल दिया है जो राजा के होने या न होने पर राज्य संचालन में हर सम्भव प्रयास करता है। परन्तु यह भी कहा है कि यदि राजा योग्य होगा तब आमात्य भी योग्य चुनेगा। कामन्दक ने समस्त सातों अंगों को महत्वपूर्ण रूप में स्वीकार किया है। उनकी दृष्टि में एक के बिना दूसरा अपंगु रूप में रहता है। अतः सातों का स्वतंत्र स्थान तथा महत्व है। तक सातों अंगों का एक समान रूप रहेगा तब तक राज्य उन्नति करता रहेगा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारतीय दर्शन में इसका क्या महत्व है?
  2. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
  4. प्रश्न- ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल की भारतीय जाति प्रथा के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन काल में शूद्रों की स्थिति निर्धारित कीजिए।
  6. प्रश्न- मौर्यकालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। .
  7. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  8. प्रश्न- पुरुषार्थ क्या है? इनका क्या सामाजिक महत्व है?
  9. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  10. प्रश्न- सोलह संस्कारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  12. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  13. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के अर्थ तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए तथा प्राचीन भारतीय विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन पर भी प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- परिवार संस्था के विकास के बारे में लिखिए।
  15. प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।
  18. प्रश्न- स्त्री के धन सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- वैदिक काल में नारी की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
  21. प्रश्न- वैदिक काल में सती-प्रथा पर टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- उत्तर वैदिक में स्त्रियों की दशा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  24. प्रश्न- राज्य के सम्बन्ध में हिन्दू विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- राजा और राज्याभिषेक के बारे में बताइये।
  28. प्रश्न- राजा का महत्व बताइए।
  29. प्रश्न- राजा के कर्त्तव्यों के विषयों में आप क्या जानते हैं?
  30. प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
  31. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामन्त पद्धति काल में राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के उद्देश्य अथवा राज्य के उद्देश्य।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्यों के कार्य बताइये।
  37. प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
  38. प्रश्न- राज्य के सप्तांग सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार राज्य के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- क्या प्राचीन राज्य धर्म आधारित राज्य थे? वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  42. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  43. प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- गुप्त प्रशासन पर विस्तृत रूप से एक निबन्ध लिखिए।
  46. प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।
  47. प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में मौर्य प्रशासन का परीक्षण कीजिए।
  49. प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  50. प्रश्न- मौर्य युगीन नगर प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- गुप्तों की केन्द्रीय शासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिये।
  52. प्रश्न- गुप्तों का प्रांतीय प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये।
  53. प्रश्न- गुप्तकालीन स्थानीय प्रशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  54. प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  55. प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
  56. प्रश्न- प्राचीनकाल में भारत के राज्यों की आय के साधनों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- प्राचीन भारत में करों के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  58. प्रश्न- कर की क्या आवश्यकता है?
  59. प्रश्न- कर व्यवस्था की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
  61. प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- मौर्य काल की सिंचाई व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  67. प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
  69. प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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